जिस टेक्नोलॉजी की मार से दुनिया में न जाने कितने कारोबार या तो बंद हो चुके हैं या खुद को बनाए रखने के लिए जूझ रहे है, उस टेक्नोलॉजी पर अकेले अमेरिका के राष्ट्रपति इतने भारी पड़ रहे है कि पूरी दुनिया में टेक्नोलॉजी से ज्यादा मेन्युफेक्चरिंग सेक्टर चर्चा का विषय बना हुआ है। टेक्नोलॉजी से दुनिया को बदलकर उसे पहले जैसा न रहने देने का दावा करने वाले कई दिग्गज खुद अपना अस्तित्व बचाने के लिए हाथ-पैर मार रहे हैं व टैरिफ लागू होने से पहले अपने प्रोडक्ट दुनिया में इधर से उधर ट्रांसपोर्ट कर रहे है ताकि समय रहते उन्हें बेचा जा सके। आर्टिफिशियल इटेलिजेंस (AI) जिसने कई कारोबारों को अपनी गिरफ्त में लेकर उन्हें फायदा पहुंचाना शुरू कर दिया है, वह भी अपनी सुपर इंटेलिजेंस से टैरिफ का असर बताने में नाकाम साबित हो रही है और यह बात फिर से साबित करने में योगदान दे रही है कि उसकी भी कोई Limit (सीमा) है। अब राष्ट्रपति ट्रम्प का अगला कदम क्या होगा यह दावा व अनुमान न तो टेक्नोलॉजी लगा सकती है न ही इस नई टेक दुनिया को बनाने वाले स्मार्ट व इंटेलिजेंट लोग बता सकते हैं। जो एक्सपर्ट बड़ी-बड़ी कंपनियों को डिजिटल दौर के लिए तैयार करने, टेक्नोलॉजी की मदद से कई प्रोसेस सुधारने व कर्मचारियों की संख्या घटाकर खर्च कम करने की राय देते आए हैं उनकी समझ भी टैरिफ वार के मामले में काम नहीं आ रही है क्योंकि चीन के अलावा पूरी दुनिया राष्ट्रपति ट्रम्प के इशारों पर नाचने को मजबूर हो चुकी है जिसके कई उदाहरण सामने आने लगे हैं। अमेरिका के लगभग सभी ट्रेड पार्टनर यानि भारत सहित करीब 70 से ज्यादा देश उसे टैरिफ न लगाने के लिए मनाने में जुटे हुए हैं और ज्यादा अमेरिकी प्रोडक्ट खरीदने की डील करने लगे हैं। वियतनाम जिस पर 46 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया था, ने बोइंग के एयरप्लेन खरीदने के लिए 300 मिलियन डॉलर की डील की है, तो साथ ही स्टारलिंक सैटेलाइट का उपयोग करने और वहां 1.5 बिलियन डॉलर में बनने वाले ट्रम्प रिजार्ट को जल्दी स्वीकृतियां देने का भरोसा अमेरिका को दिलाया है।
इसी तरह थाइलैंड Corn Feed (मक्के का चारा) की और यूरोप सोयाबीन की खरीद बढ़ाने की बात कर रहे हैं। साऊथ कोरिया अलास्का में 44 बिलियन डॉलर के नेचुरल गैस प्रोजेक्ट का हिस्सा बनने पर अमेरिका से चर्चा कर रहा है। भारत अमेरिका के साथ अपने ट्रेड में 4 गुना बढ़ोतरी करके उसे 500 बिलियन डॉलर तक ले जाने की पेशकश कर रहा है और ट्रंप भारत पर ज्यादा अमेरिकी हथियार खरीदने का दबाव बना रहे हैं। थाइलैंड, वियतनाम व मलेशिया अमेरिका से ज्यादा अनाज खरीदने के संकेत अर्जेटिना के एक्सपोर्टरों को दे चुके हैं जहां से अभी तक ये देश सबसे ज्यादा अनाज इंपोर्ट करते थे। अमेरिका अपने प्रोडक्ट दुनिया में बेचने के साथ-साथ अरबों डॉलर के इंवेस्टमेंट पर भी बराबर का फोकस कर रहा है जिससे फैक्ट्रियां लगेगी व प्रोडक्शन होगा यानि मेन्युफेक्चरिंग को फिर से इकोनोमी का प्रमुख हिस्सा बनाने की दिशा में अमेरिका आगे बढ़ रहा है। अब तक टेक्नोलॉजी की पॉवर कारोबारों का क्रिएशन करने में उतना काम नहीं आई है जितना चलते कारोबारों को ऊपर-नीचे (Disrupt) करके उन्हे लडऩे, थकने, हारने व बदलने जिसे इन्नोवेशन माना जाता है, के लिए मजबूर करने में काम आ रही है। अगर ट्रेडवार और टैरिफ वार ज्यादा गहराता है तो यह मानकर चला चाहिए कि दुनिया में टेक्नोलॉजी से मेन्युफेक्चरिंग की तरफ बड़ा शिफ्ट होगा और इतिहास बताता है कि मेन्युफेक्चरिंग सेक्टर ने किस तरह अकेले दुनिया व देशों को बदला है जिसके चीन, जापान, अमेरिका आदि उदाहरण है। राष्ट्रपति ट्रम्प और अमेरिका किस स्ट्रेटेजी पर काम कर रहे हैं यह ्रढ्ढ या टेक्नोलॉजी के साथ-साथ कोई नहीं जानता पर उनकी स्ट्रेटेजी कितनी पॉवरफुल है यह सभी देख चुके हैं इसलिए कारोबारों के मामलों में अनुमान लगाने का दावा करने जैसे नामुमकिन कामों के लिए टेक्नोलॉजी पर भरोसा करने का समय शायद अभी काफी दूर है, ऐसा कहा जा सकता है।