प्रधानमंत्री की इकोनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल के सदस्य संजीव सान्याल ने कुछ दिनों पहले ट्विटर पर एक पोस्ट में कहा था कि भारत सरकार हॉस्पिटल बिलिंग को यूनिफॉर्म कर रही है। अब रिपोर्ट्स में कहा गया है कि हॉस्पिटल, नर्सिंग होम और डायग्नोस्टिक सेंटर आदि के लिए स्टेंडर्डाइज्ड (एक जैसा या मानकीकृत) बिल का ड्राफ्ट तैयार कर लिया गया है। भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) और केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) द्वारा हेल्थ सर्विसेस के एक्सपर्ट्स, एडवोकेसी ग्रुप्स और अन्य स्टेकहोल्डर्स के परामर्श से डवलप किया गया यह बिलिंग फॉर्मेट से रोगियों को सभी कंज्यूमेबल आइटम्स और सर्विसेस के साथ ही चिकित्सा सुविधाओं की डिटेल और मदवार जानकारी मिल जाएगी। इस ड्राफ्ट में हॉस्पिटल बिल्स के अनिवार्य और वैकल्पिक तत्वों को भी तय किया गया है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार इससे हॉस्पिटल बिलिंग में ट्रांसपेरेंसी लाने में मदद मिलेगी और हॉस्पिटल व कंज्यूमर व बीमा कंपनियों के बीच विवाद कम होंगे। भारत सरकार के साथ ही कई राज्य सरकारें भी हेल्थ इंश्योरेंस की सुविधा देती हैं। पिछले साल वेटरन्स फोरम फॉर ट्रांसपेरेंसी इन पब्लिक लाइफ नाम के एक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट के सामने एक जनहित याचिका के जरिए हॉस्पिटल बिल्स में बड़ी गड़बड़ी का दावा किया था। जनहित याचिका में बताया गया कि प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों के बीच इलाज की लागत में बहुत भारी अंतर है। एक ही आइटम की सरकारी अस्पताल में प्राइस अलग होती है और प्राइवेट में अलग। मामले की सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने केंद्र सरकार को जनहित से जुड़े इन मुद्दों पर तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश दिया। बीमा नियामक आईआरडीए के आंकड़ों के अनुसार वित्तीय वर्ष 23-24 के दौरान 1.2 लाख करोड़ रुपये के क्लेम में से बीमा कंपनियों ने केवल 71.3 परसेंट का ही पेमेंट किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस दौरान 3 करोड़ क्लेम्स में से 2.70 करोड़ क्लेम्स में ही पेमेंट किया गया बाकी को रिजेक्ट कर दिया गया। जबकि बीमा कंपनियों को समयबद्ध तरीके से 100 परसेंट कैशलेस क्लेम सैटलमेंट करने को कहा गया है।