विकसित देशों में फैब्रिक के ओरीजिन, कम्पोजीशन, धोने व देखभाल करने के तरीके का उल्लेख करना अनिवार्य है। उच्च अधिकारियों के अनुसार अब भारत में भी ग्लोबल पे्रक्टिसेज को फॉलो करने का विचार किया जा रहा है। इससे फैब्रिक की बेहतर रीसाइक्लिंग को तो बल मिलेगा ही, कस्टमर को भी फैब्रिक के बारे में पूरी जानकारी मिल पायेगी। नये लेबलिंग नियमों के तहत एपेरल, होम लिनन के बारे में पूरी जानकारी को शेयर करना होगा। शुरूआती स्तर पर चर्चा का दौर शुरू हो गया है। 2024 में इन्डिया में 175.7 बिलियन डॉलर के टैक्सटाइल और एपेरल्स का उत्पादन किया गया। अपे्रल-अक्टूबर के बीच 20.4 बिलियन डॉलर का एक्सपोर्ट हुआ है। फाइबर के कंटेंट के बारे में जानकारी होना जरूरी है क्योंकि कपड़े को टेक्सटाइल रीसाइक्लिंग प्रोसेस के साथ कम्पेटेबल होना चाहिये। यदि कपड़े को फेंका भी जा रहा है तब भी यह पता होना जरूरी है। रिटेल चेन भी इस जानकारी के साथ सप्लाई को मैनेज कर पायेंगी। लेबलिंग नियमों के साथ रेडीमेड गारमेंट्स, मेड-अप आर्टिकल्स के बारे में कन्ज्यूमर को जानकारी होगी तो जागरुकता बढ़ेगी। यही नहीं प्रोडक्ट के बारे में मिसलीडिंग क्लेम से भी छुटकारा मिल पायेगा। भारत जिस प्रकार से अनेक देशों के साथ ट्रेड एग्रीमेंट कर रहा है, उसमें लेबलिंग नियम बेहद जरूरी हैं। ग्लोबल स्टेंडर्ड के अनुसार फैब्रिक के लेबलिंग नियम लाये जायेंगे, तो मार्केट में साख भी जमेगी।