वर्ष 2010 में जब शोभा वारियर ने विश्व के सबसे बड़े रोज एक्सपोर्टर का साक्षात्कार लिया तो यह अनुमान नहीं था कि एक दिन वे उनकी पुत्रियों से भी साक्षात्कार कर रही होंगी। पिता रामकृष्ण करुतुरी गुलाब के सबसे बड़े निर्यातक रहे हैं। उनकी दोनों पुत्रियों यशोदा और रिया ने भी अपने बिजनेस के लिए फूल को ही चुना। और चुनती भी कैसे नहीं, आखिर उनका बचपन तो घर में गुलाब के पुष्प देखकर ही बीता था। लेकिन दोनों यंग एंटरपे्रन्योर बहनों ने गुलाब ही नहीं पूजा पुष्प उपलब्ध करवाने का क्षेत्र चुना है। उनका कार्य क्षेत्र भारत है। प्रतिदिन भारतीय घरों में पूजा का रिवाज है और पुष्पों की जरूरत प्रतिदिन होती है। इसी जरूरत को पूरा करने के लिए बड़ी बहिन यशोदा ने हूव (फ्लावर ऑफ कन्नड) की शुरूआत की। यह बहुत बड़ा मार्केट है। प्रतिदिन के अलावा हर विशेष अवसर पर ईश्वर अराधना के लिए पुष्पों की जरूरत पड़ती है। इस काम में यशोदा की छोटी बहिन रिया भी बखूबी साथ दे रही हैं। उनका बचपन इथोपिया में बीता जहां उनके पिता के रोज फॉम्र्स थे। यशोदा के अनुसार उनका जन्म बैंगलुरु में हुआ। यहां उनके पिता का रोज फॉर्म था। कुछ वर्षों बाद कारोबार का विस्तार करने का सोचा और इसके लिए इथोपिया, कीनिया और यूरोप में भी रहे। उस समय हमें यह अनुमान नहीं था कि पिता घर के हर कोने में फूल क्यों लगाते हैं। एक बार पढ़ाई के लिए अमेरिका जा रही थी तो यूएस वीजा अपॉइंटमेंट के दौरान वीजा ऑफिसर ने पूछा कि उनका पिता क्या करते हैं। जवाब दिया गुलाब बेचते हैं। ऑफिसर ने कहा क्या वे कॉलेज फीस दे पायेंगे। यशोदा ने यह नहीं बताया कि उनके पिता रोज एक्सपोर्टर हैं। यंग एंटरपे्रन्योर्स के अनुसार अक्सर बिजनेस को फैक्ट्री, मशीन, वर्कर्स आदि से जोडक़र देखा जाता है लेकिन उनके पिता का बिजनेस खुशबू, रंग का समावेश करता था। पिता का गुलाब के प्रति स्नेह अनूठा है। वे गुलाब को सहलाते हैं और उनके नाम भी रखते हैं। बचपन में रोज गार्डन में जाना होता था, शायद वहीं से इस बिजनेस को आगे बढ़ाने का आइडिया आया। बचपन से ही रिया और यशोदा एग्रीकल्चर बेस्ड बिजनेस के प्रति आकर्षित रही। अकाउंटिंग एंड बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर्स करने के दौरान बिजनेस को रन करने का समझ पैदा की। अमेरिका जाने का एक कारण यह था कि दूसरे देश में स्वतंत्र रूप से कैसे जिया जाता है, यह भी सीखना था। माता-पिता ने हमेशा यही कहा कि वे वापस आना चाहती हैं तो आ सकती हैं। जीवन में क्या करना है, इसके लिए जो निर्णय लेना चाहती हैं ले सकती हैं। शुरूआती स्तर पर तो अमेरिका में ही रहकर सीखने, समझने, अनुभव लेने का विचार था। गे्रज्युएशन पूरा होने के एक माह पहले ही पिता को हार्ट अटैक आ गया। इस कारण वे तुरंत लौट आई और शेष सेमिस्टर रिमोटली किया।
यशोदा ने पिता की बीमारी के कारण बिजनेस की देखरेख शुरू की। रिया भी इस दौरान बिजनेस में शामिल हो गई। इस दौरान पिता की तबेयत ठीक होने लगी और हमने यह विचार किया कि परिवार की परम्परा के अनुसार वे स्वयं का बिजनेस करेंगी। यह आसान नहीं था क्योंकि शुरूआत स्टार्टअप एक शिशु की तरह होता है। उसे पूरे प्यार, धैर्य, देखभाल की जरूरत होती है। इसी आइडिया के साथ ‘हूव’ की शुरूआत हुई। फूलों के प्रति समझ थी और इसलिए यह पता था कि जो करना है फूलों के साथ ही करना है। एक दिन जब वे घर आई तो देखा मां पूजा कर रही हैं। उनके पास काफी सारी पुष्प रखे हैं। यही वह समय था जब आइडिया क्लिक हुआ और एंटरपे्रन्योरशिप जर्नी की शुरूआत हो गई। भारत में तो यह काम हर दिन होता है। जब हम फूल की बात करते हैं तो बुके, वेडिंग डेकोर, सजावट की बात होती है। लेकिन दैनिक रूप से पूजा में काम आने वाले पुष्प हर घर की जरूरत होते हैं। पूजा फ्लॉवर इंडस्ट्री पर रिसर्च शुरू की। हूव नाम इसलिए रखा क्योंकि यह इन्डिया ब्राण्ड नेम लगता है। जब इस काम को शुरूआत की तो रिया कॉलेज में थी। लेकिन वे वेबसाइट सैट करने में मदद कर रही थी। जब आइडिया फार्मूलेट होने लगा तो रिया का गे्रज्यूएशन पूरा होने वाला था। अब हमारा आइडिया पूजा फ्लॉवर्स के लिए एक ब्राण्ड बनाने का था। इसके लिए बारिकियों को समझना शुरू किया। बचपन में जो देखा, उससे यह पता था कि फूलों की क्वालिटी, किसानों के साथ काम करना आदि जरूरी होगा। सवाल यह था कि वे पूजा के फूलों का पैकेट फे्रश रूप में घरों तक कैसे पहुंचायेंगे। एक पैकेजिंग मशीन देश में पहली बार लांच की गई जो ऑटोमैटिकली फूलों को पैक करती है। यह काम रिया का था। उन्होंने बिजनेस की शुरूआत में एंजिल इंवेस्टर से दस लाख रुपये की मदद ली। उन्होंने सोच कि धैर्य के साथ आगे बढ़ेंगे। इसलिए हर कदम फूंक-फूंककर रखा गया। घर के एक कोने में काम को शुरू किया। केवल दो लोगों को काम पर रखा और एक पैकिंग मशीन इन्स्टॉल की। जैसे-जैसे बिजनेस ग्रो करने लगा, बड़ा ऑफिस लिया और मशीनों की संख्या बढ़ाई गई। वर्तमान में अनेक वेयरहाउस हैं। फूलों की कीमत 25 रुपये से एक हजार रुपये तक है। एक और बात यह कही कि फूलों को लेने के लिए क्विक कॉमर्स प्लेटफॉर्म जैसे बिग बास्केट, जेप्टो आदि पर सब्सक्रिप्शन ले सकते हैं और डेली फे्रश फ्लावर्स अवेलेबल किये जाते हैं। वर्तमान में 150,000 ऑर्डर प्रतिमाह प्राप्त हो रहे हैं। उनकी स्वयं की वेबसाइट है लेकिन इस पर केवल नॉन-फ्लावर रिलेटेड अगरबत्ती सेल की जाती है। स्टार्टअप की शुरूआत 2019 में हुई और 2020 में कोविड पेंडेमिक रहा। इस दौरान कस्टमर्स की संख्या 800 से 1000 की थी। कुछ माह के लिए इस दौरान बिजनेस को बंद करना पड़ा। जब फिर से काम शुरू हुआ तो कस्टमर्स फिर से कनेक्ट हो गये। कोविड के बाद की जर्नी काफी एक्साइटिंग रही। इसका कारण यह भी रहा कि कोविड के दौरान इंटरनेट एडॉप्शन बढ़ा है। लोग डिलीवरी प्लेटफॉर्म, ऑनलाइन बाइंग के प्रति ज्यादा अट्रेक्ट हुए हैं। वे वर्तमान में बैंगलुरु, हैदराबाद, चेन्नई, मैसूर, पुणे, मुम्बई, गुरुग्राम और नोएडा में सर्विस दे रहे हैं। यूनिक बात यह है कि उन्होंने जीरो टच फ्लॉवर की शुरूआत की। पैकिंग मशीन ही पैकिंग का काम करती है। उनका सपना अब यही है कि हूव को रिलाएबल पूजा फ्लावर ब्राण्ड बनायें। जब पूजा फूलों की बात हो तो हूव का नाम आये। यही उनके काम के प्रति सच्ची लगन को दर्शाता है।