भारत जैसे करंट अकाउंट डेफिसिट वाले देश को इंपोर्ट की जरूरत को पूरा करने के लिए डॉलर चाहिएं। और डॉलर पेड़ पर नहीं उगते। बस यहीं एफडीआई पिक्चर में आता है। एफडीआई यानी फॉरेन डायरेक्ट इंवेस्टमेंट से जो डॉलर आते हैं उनका इस्तेमाल इंपोर्ट बिल के पेमेंट के लिए किया जाता है। लेकिन चैलेंज यह है कि भारत में एफडीआई के जरिए जितने डॉलर आ रहे हैं करीब उतने ही हम हिंदुस्तानी विदेश सैर-सपाटे, बच्चों की फॉरेन एजुकेशन पर खर्च कर देते हैं। यानी हाथ में डॉलर बचते हैं निल बटे सन्नाटा। लेकिन अब एक नई थ्यॉरी सामने आ रही है कि क्या गोल्ड एफडीआई की जगह ले सकता है। पिछले 10 वर्ष में एफडीआई और एफपीआई मिलाकर लगभग 400 बिलियन डॉलर भारत में आए। इसी अवधि में भारत का गोल्ड इंपोर्ट 450 से 500 बिलियन डॉलर के बीच रहा। भारत के कुल इंपोर्ट बिल में गोल्ड का लायन्स शेयर (शेर का हिस्सा) है। हर साल भारत 35 से 55 बिलियन डॉलर गोल्ड इंपोर्ट पर खर्च करता है। यानी गोल्ड का चस्का देश के ट्रेड डेफिसिट को धक्का (पुश) दे रहा है। यानी एफडीआई से जितने डॉलर भारत आते हैं करीब उतने ही गोल्ड इंपोर्ट से बाहर चले जाते हैं। दूसरा गोल्ड बैंक के लॉकर और तिजोरी मेंं पड़ा रहता है और इसका कोई प्रोडक्टिव इस्तेमाल नहीं होता। वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के अनुसार भारत में लगभग 25 हजार टन फैमिली गोल्ड है। इसकी वेल्यू होती है करीब 3.8 ट्रिलियन डॉलर या 315 लाख करोड़ रुपये। जो भारत के जीडीपी के करीब 90 परसेंट के बराबर है। अगर इस गोल्ड को कैपिटल जेनरेशन या प्रोडक्टिव इंवेस्टमेंट में इस्तेमाल किया जाए तो देश को एफडीआई की क्या जरूरत। रिपोर्ट कहती हैं कि अकेले गोल्ड ट्रेड (इंपोर्ट माइनस एक्सपोर्ट) में ही देश को लगभग 400 बिलियन डॉलर का घाटा हुआ है। पिछले दशक में भारत का कुल ट्रेड डेफिसिट लगभग 1,700 बिलियन डॉलर रहा है, जिसमें से करीब 400 बिलियन डॉलर केवल सोने के कारण है। अप्रैल 2000 से अब तक भारत ने करीब 750 बिलियन डॉलर का कुल इक्विटी एफडीआई आया है। भारत के फॉरेक्स रिजर्व में लगभग 225 बिलियन डॉलर अमेरिकी ट्रेजरी बांड्स हैं, जिन पर लगभग 4 परसेंट रिटर्न मिलता है। वहीं सोना, जो भारत के फॉरेक्स रिजर्व करीब 15 परसेंट है। जो पिछले 10 वर्ष में डॉलर के हिसाब से 12 परसेंट से ज्यादा की सीएजीआर रिटर्न दे चुका है। रिपोर्ट यह भी कहती हैं कि वित्त वर्ष 2025 में विदेशी निवेशकों ने लगभग 100 बिलियन डॉलर भारत से वापस ले लिए जबकि वित्त वर्ष 24 में यह आंकड़ा करीब 90 बिलियन डॉलर था। यानी एफडीआई का बड़ा हिस्सा मुनाफे और डिविडेंड के रूप में वापस चला जाता है।
