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07-04-2025

‘डीड पर नाम होने का अर्थ ओनरशिप होना नहीं’

  •  आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (आईटीएटी), मुंबई बेंच ने फैसला सुनाया है कि यदि किसी व्यक्ति का नाम किसी प्रॉपर्टी पर को-ओनर के रूप में है लेकिन वह वास्तविक बेनेफिशियरी नहीं हो तो उस प्रॉपर्टी की सेल से होने वाली आय पर कैपिटल गेन्स टैक्स देने के लिए उत्तरदायी नहीं है। न्यायाधिकरण ने जोर देकर कहा कि ओनरशिप का पता वित्तीय हित से होता है, न कि केवल प्रॉपर्टी डीड पर नाम से। यह फैसला वी एन जैन के मामले में आया, जिनके पास अपने भाई के साथ संयुक्त रूप से एक संपत्ति थी। संपत्ति को वित्तीय वर्ष 2014-15 में 54 लाख रुपये में बेचा गया था। आयकर (आई-टी) अधिकारी ने माना कि जैन की संपत्ति पर अपने अधिकार को त्यागने का कोई एग्रीमेंट नहीं था जैन के आय के हिस्से 27 लाख रुपये को कर योग्य पूंजीगत लाभ माना। जैन ने इस टेक्स नोटिस को चुनौती देते हुए कहा कि संपत्ति मूल रूप से उनके भाई द्वारा खरीदी गई थी, जिनके पास इसका पूर्ण कब्जा और अधिकार था। उनका नाम को-ओनर के रूप में केवल पारिवारिक विचार से जोड़ा गया था। आईटीएटी ने परचेज डॉक्यूमेंट्स और बैंक स्टेटमेंट्स की समीक्षा की और पाया कि जैन ने न तो खरीद में योगदान दिया था और न ही उन्हें बिक्री आय का कोई हिस्सा मिला था। साथ ही उनके भाई ने अपने टेक्स रिटर्न में पूरी बिक्री राशि घोषित की थी। आईटीएटी ने जैन के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि चूंकि वह बेनेफिशियरी ओनर नहीं थे, इसलिए उन पर कैपिटल गेन्ट टेक्स नहीं लगाया जा सकता है।

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‘डीड पर नाम होने का अर्थ ओनरशिप होना नहीं’

 आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (आईटीएटी), मुंबई बेंच ने फैसला सुनाया है कि यदि किसी व्यक्ति का नाम किसी प्रॉपर्टी पर को-ओनर के रूप में है लेकिन वह वास्तविक बेनेफिशियरी नहीं हो तो उस प्रॉपर्टी की सेल से होने वाली आय पर कैपिटल गेन्स टैक्स देने के लिए उत्तरदायी नहीं है। न्यायाधिकरण ने जोर देकर कहा कि ओनरशिप का पता वित्तीय हित से होता है, न कि केवल प्रॉपर्टी डीड पर नाम से। यह फैसला वी एन जैन के मामले में आया, जिनके पास अपने भाई के साथ संयुक्त रूप से एक संपत्ति थी। संपत्ति को वित्तीय वर्ष 2014-15 में 54 लाख रुपये में बेचा गया था। आयकर (आई-टी) अधिकारी ने माना कि जैन की संपत्ति पर अपने अधिकार को त्यागने का कोई एग्रीमेंट नहीं था जैन के आय के हिस्से 27 लाख रुपये को कर योग्य पूंजीगत लाभ माना। जैन ने इस टेक्स नोटिस को चुनौती देते हुए कहा कि संपत्ति मूल रूप से उनके भाई द्वारा खरीदी गई थी, जिनके पास इसका पूर्ण कब्जा और अधिकार था। उनका नाम को-ओनर के रूप में केवल पारिवारिक विचार से जोड़ा गया था। आईटीएटी ने परचेज डॉक्यूमेंट्स और बैंक स्टेटमेंट्स की समीक्षा की और पाया कि जैन ने न तो खरीद में योगदान दिया था और न ही उन्हें बिक्री आय का कोई हिस्सा मिला था। साथ ही उनके भाई ने अपने टेक्स रिटर्न में पूरी बिक्री राशि घोषित की थी। आईटीएटी ने जैन के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि चूंकि वह बेनेफिशियरी ओनर नहीं थे, इसलिए उन पर कैपिटल गेन्ट टेक्स नहीं लगाया जा सकता है।


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